अमरीका को ना तो भारत से मोहब्बत है ना पाकिस्तान सेः नज़रिया

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने एक बार फिर कश्मीर मुद्दे में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की पेशकश की है. इससे पहले उन्होंने भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों से बात करते हुए दोनों देशों के बीच बढ़ रहे तनाव को काम करने की सलाह दी थी.

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ क़रीब 30 मिनट तक लंबी बातचीत की फिर उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को फोन मिलाया.

ट्रंप ने दोनों प्रधानमंत्रियों से हुई अपनी बातचीत को लेकर ट्वीट भी किया जिसमें उन्होंने कहा, "मैंने अपने दो अच्छे दोस्तों से बात की - भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान. बातचीत व्यापार और अहम रणनीतिक मुद्दों पर बातचीत हुई. खास तौर पर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने पर भी बात हुई. हालात जटिल हैं मगर बातचीत अच्छी हुई."

कुछ वक्त पहले इमरान ख़ान डोनल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की अमरीका यात्रा के दौरान कहा था कि वो कश्मीर के मुद्दे पर मध्यस्थता के लिए तैयार हैं.

उन्होंने ये भी दावा किया था कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक हालिया मुलाक़ात के दौरान उनसे कश्मीर के मुद्दे पर मध्यस्थता करने का आग्रह किया था.

इस बातचीत को लेकर राजनयिकों के बीच अलग-अलग राय है. कुछ मानते हैं कि अमरीकी राष्ट्रपति समय-समय पर ऐसा बोलते आए हैं चाहे वो बराक ओबामा हों या फिर उनसे भी पहले जो अमरीका के राष्ट्रपति रहे हों.

पाकिस्तान में भारत के राजदूत रहे जी पार्थसारथी भी ऐसा ही मानते हैं.

उनका कहना है, "ट्रंप ने कोई मध्यस्थता नहीं की बल्कि वही किया जो उनसे पहले के राष्ट्रपतियों ने भी किया है. ये कहना कि आतंकवाद बंद किया जाए, दोनों देशों के बीच तनाव काम हो - ये कहने का अमरीका को हक़ भी है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसने भारत की मदद की है."

हालांकि पार्थसारथी को लगता है कि इस वक़्त अमरीकी राष्ट्रपति की ये पहल उनकी 'राजनयिक मजबूरी' भी हो सकती है क्योंकि अमरीका को अफ़ग़ानिस्तान से अपनी फ़ौज हटानी भी है.

जी पार्थसारथी ने बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "वो (अमरीका) अफ़ग़ानिस्तान से भाग रहा है. उसके बीच में वो कोई रुकावट नहीं चाहते हैं. वो नहीं चाहते कि इस प्रक्रिया के दौरान कोई नई अड़चन पैदा हो."

"अमरीका इन सब चीज़ों में दिलचस्पी लेता रहा है. लेकिन इसे मध्यस्थता नहीं कहा जा सकता है. हाँ, मध्यस्थता तब कहेंगे जब भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही बातचीत के बीच में अमरीका आकर बैठ जाए."

पार्थसारथी का कहना है कि अमरीका को पाकिस्तान में कोई दिलचस्पी नहीं है.

वे कहते हैं, "न तो अमरीका पकिस्तान को कोई आर्थिक सहायता देता है, न ही कोई व्यापार करता है, और पूंजीनिवेश का तो सवाल ही नहीं उठता. उनको तो बस इतना ही मतलब है कि अफ़ग़ानिस्तान से निकलते समय कोई नई अड़चन या उलझन पैदा ना हो."

वहीं सरहद पार, यानी पकिस्तान में मौजूद कूटनीति पर नज़र रखने वालों का मानना है कि ट्रंप के फ़ोन करने की नौबत भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के हाल ही में दिए गए बयान से पैदा हुई होगी जिसमे उन्होंने कड़े अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल किया था.

राजनाथ सिंह ने हाल में कहा था कि पाकिस्तान से बात होती है तो वह केवल अब 'पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके)' पर ही होगी.

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